मंडियों की हकीकत ये कि 25 प्रतिशत खरीद भी समर्थन मूल्य पर नहीं होती, 75% किसान साहूकारों को अपनी फसल बेचते हैं https://ift.tt/2ScFfCX

केंद्रीय कृषि के विरोध को लेकर कांग्रेस ने एडी चोटी का जोर लगा रखा है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि इन कानूनों की आड़ लेकर केंद्र की एनडीए सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) को खत्म करना चाहती है। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि एमएसपी होते हुए भी प्रदेश के तीन चौथाई किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए साहूकारों का ही मुंह देखना पड़ता है।

हालांकि सरकार दावे करती है कि कम से कम 25 प्रतिशत किसानों से एमएसपी पर फसल खरीदी जाए लेकिन हकीकत यह है कि ज्यादातर समय यह लक्ष्य भी पूरा नहीं होता। रबी 2020-21 के लिए प्रदेश में सरसों की फसल एमएसपी पर बेचने के लिए 3 लाख 20 हजार किसानों ने रजिस्ट्रेशन करवाया।

प्रदेश में इसका कुल उत्पादन 39.52 लाख मीट्रिक टन हुआ। केंद्र की तरफ इसमें से एमएसपी पर 10 लाख 46 हजार मीट्रिक टन फसल खरीद का लक्ष्य तय किया गया लेकिन सिर्फ 1 लाख 39 हजार किसानों से ही एमएसपी पर 3 लाख 46 हजार मीट्रिक टन सरसों खरीदी गई। एमएसपी पर सरसों का भाव 4425 रुपए प्रति क्विंटल था। लेकिन समर्थन मूल्य नहीं मिलने के चलते किसानों को निजी मंडियों में साहूकारों के पास 300 से 400 रुपए प्रति क्विंटल कम भावों पर सरसों बेचनी पड़ी।

इसी तरह चने का 26 लाख 85 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ। इसमें से एमएसपी पर खरीद के लिए 6 लाख 15 हजार मीट्रिक टन का टारगेट तय किया गया। इसके लिए करीब 3 लाख किसानों से खरीद केंद्रों पर अपने रजिस्ट्रेशन करवाए। इनमें से 2 लाख 39 हजार किसान ही समर्थन मूल्य पर फसल बेच पाए।

पिछले सालों से तुलना करें तो खरीफ 2019-20 में मूंग, उड़द, सोयाबीन और मूंगफली की एमएसपी पर खरीद की गई। प्रदेश में मूंग का उत्पादन 12 लाख मीट्रिक टन, उड़द का 3.82 लाख मीट्रिक टन, सोयाबीन का 14.16 लाख मीट्रिक टन व मूंगफली का 12.28 लाख मीट्रिक टन हुआ। समर्थन मूल्य पर इनमें से मूंग की खरीद 1.21 लाख मीट्रिक टन, उड़द की 26 हजार टन, सोयाबीन की शून्य व मूंगफली की 1.93 लाख मीट्रिक टन ही हुई।

इनका कहना है
सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को एक तरफ गारंटी मूल्य बताती है दूसरी और उस पर खरीद भी नहीं करती। बिना खरीद पर इसकी सार्थकता पर सवाल रहता है। यह स्थिति तब है जब केंद्र कह रहा है कि समर्थन मूल्य जारी रहेगा। एमएसपी पर खरीद नहीं होने के कारण किसानों को एक हजार रुपए से लेकर 2700 रुपए प्रति क्विंटल तक का नुकसान उठाकर फसल बेचनी पड़ती है।
रामपाल जाट, राष्ट्रीय अध्यक्ष, किसान महापंचायत



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फसल खरीद मंडी (फाइल फोटो)


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